Bridge-in-Making
I ant an Indian poet in English!
How long shall I wear this elegant
garland? Can I even put it down?
Poetry in English is like a passion for empire building.
It's the subaltern speaking
the words pleading to be universally, intently heard.
I guess what I write is no English.
Still it's a negotiable alternative to breathing,
to the art of living.
It's the aroma to keep my spirits buoyant.
It's a reconciliation, a bridge-in-making,
between the privileged and the marginalized.
Oh Muses! Teach me how to break down
this boundary — poets and Indian English poets--erected
since ages, between the periphery and the centre.
Make my poetry as delicious as
watered-rice-brinjal-fry and
dry-fish. To look the world in the eye.
I write in English to free my words
lying imprisoned in the arms of the heart.
Be it Odishan or Indian, but it's out of this earth and wind.
I am the drunkard and I am the glass
of beer. I have committed no sin
which you haven't ;I share your fate.
Odia is to think, feel, dream and
be my funeral pyre. English, to me,
Is my garland and my sword, my sole refuge.
It's the voice of my longings and belongings.
Honest as the west wind and the yearly floods in
coastal Indian villages, it's the frozen marrow in my bones.
But it gives me a name, my very own.
It comes to me without tireless waiting.
It torrents with the haste of the Yamuna in July rain.
Language is like raindrops shaped into a pearl.
It's like happy-healthy sprouted beans;
like red wine from Goa; like silken embroidery on my outfit.
Poetry kick-starts the day with the mercury boiled,
it clears all barriers between the
heart and the home and hearth.
The letters of the English alphabet I use, with their-
jingling anklets, flood my world with joy.
Poetry falls down in droplets, the stars melt away.
I and Indian, Odia by birth, with
wheatish brown skin, dark eyes.
am just a poet --English or no English-- my taverns filled with Muses.
18. समन्वय-सेतु
मैं अंग्रेजी में कविता वाली भारतीय कवयित्री हूं !
मैं कब तक इस चारु पुष्प-माला को पहन कर रखूंगी ?
क्या मैं भी इसे नीचे भी रख सकती हूं?
अंग्रेजी में कविता लिखना किसी साम्राज्य निर्माण के जुनून जैसा है ।
यह सार्वभौमिक रूप से
मातहतों की वकालत करने वाले सोद्देश्य सुने जाने वाले शब्द है।
मुझे लगता है कि मैं जो लिखती हूं, वह अंग्रेजी नहीं है।
फिर भी यह साँस लेने के लिए मेरा परक्राम्य विकल्प है,
जीवन जीने की कला का ।
यह मेरी आत्मा को खुश रखने वाली सुगंध है।
यह एक मेल-मिलाप है, समन्वय–सेतु है,
विशेषाधिकार और हाशिए वाले लोगों के बीच का।
हे सरस्वती ! मुझे सिखाओ कि कैसे तोडूंगी मैं सदियों पुरानी
सीमा-रेखा- कवियों और भारतीय अंग्रेजी कवियों – के बीच की
परिधि और केंद्र के मध्य की।
मेरी कविता को इतना स्वादिष्ट बनाओ
पखाल और सूखी मछली की तरह
कि दुनिया की नजरों में आएँ ।
मैं अंग्रेजी में लिखती हूं हृदय की बाहों में कैद
शब्दों को उन्मुक्त करने के लिए
भले वे ओड़िया हो या भारतीय, है तो इस धरती और हवा से निर्मित।
मैं शराबी हूं और मैं बीयर का ग्लास हूं
मैंने ऐसा कोई पाप नहीं किया है
जो आपने नहीं किया हो, मैं आपका भाग्य साझा करती हूं ।
ओडिया मेरे लिए सोचने की, अनुभव करने की, सपने देखने की भाषा है
और चाहे वह मेरा अंतिम संस्कार क्यों न हो।
अंग्रेजी, मेरे लिए, गले का हार और मेरी तलवार, मेरी एकमात्र शरण है।
यह मेरी लालसाओं और सामानों की आवाज है।
पश्चिमी हवा और तटीय भारतीय गांवों वार्षिक बाढ़ की तरह ईमानदार,
यह मेरी हड्डियों में संग्रहित मज्जा है।
लेकिन यह मुझे नाम देती है, मेरा अपना।
यह अथक प्रतीक्षा के बिना मेरे पास आती है।
यह जुलाई की मूसलाधार बारिश में यमुना की तरह उफनती है।
भाषा मोती के आकार की बारिश की बूंदों की तरह है।
यह खुश-स्वस्थ रखने वाले अंकुरित बीन्स की तरह है;
यह गोवा की रेड वाइन की तरह है; मेरी पोशाक पर रेशमी कढ़ाई की तरह है।
कविता से शुरू होता है भीषण गर्मी का दिन,
जो सारे अवरोधों को दूर करता है
हृदय, घर और चूल्हे के बीच का।
अंग्रेजी वर्णमाला के जिन अक्षरों का मैं उपयोग करती हूं,
उनके साथ छन-छन करते नूपुर, मेरी दुनिया में रस घोल देते हैं।
कविता बूँदाबाँदी करने लगती है, तारे पिघल जाते हैं।
मैं भारतीय हूँ, जन्मजात ओडिया
मेरी गेहुँआ भूरी त्वचा, मेरी काली आँखें
मैं केवल कवयित्री हूँ- अंग्रेजी या अनंग्रेजी- मेरी मधुशाला सारस्वत है।
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