Zero Point
I am at the zero point of divine energy
in the engagement of numbers in enjoining my universe.
The muse of my life is to accomplish freedom
and mount to sundrenched worlds.
My existence is designed to realize inner transparency
of the metalanguage and institution, and
zero is my witness, guardian, channel and champion.
Zero is an algebraic account of Nirguna Brahman
the Brahman sans a form and devoid of intrinsic worth.
Nirguna Brahman is a timeless ambiguity.
The known-unknown. So is zero.
The bodily laws of the cosmos
do not pertain to zero.
Zero rises as a link
between the material and the metaphysical
between cause and conviction.
The least and also the leading of all,
it could neither be ruined nor twisted.
I find it everywhere,
veiled in every other figure.
Zero is symbol of the primitive.
There is no other in order
that can embody me at this point
with such precision and such attached-detachment.
शून्य बिंदु
मैं दिव्य ऊर्जा-रेखा के शून्य बिंदु पर खड़ी हूँ
मुझे ब्रह्मांड से जोड़ने वाली रेखाओं की जोड़-तोड़ में
मेरे जीवन-देवता की चाह मुक्ति पाने की
और सूर्य रश्मियों से आप्लावित दुनियाओं के
शिखर पर चढ़ने की।
मेरे अस्तित्व की पहचान
दूसरों की भाषाओं और संस्थाओं को जानने की
शून्य ही मेरा साक्षी, संरक्षक, पथ प्रदर्शक और नियंता
निर्गुण ब्रह्म का अंकगणितीय रूप शून्य
वह ब्रह्म जो है निराकार निरपेक्ष मूल्य
निर्गुण ब्रह्म एक कालजयी भ्रांति
ज्ञात भी अज्ञात भी, कैसी उदभ्रांति?
ठीक वैसे ही जैसे सूर्य को रहस्यमयी शांति
ब्रह्मांड के खगोलीय नियमों में
कहीं नहीं खपता शून्य
भौतिक और आध्यात्मिक जगत का
संपर्क सेतु है शून्य
कर्म और फल का भी
सबसे कम, सबसे आगे शून्य
अविकार्य, अतन्य
हर जगह मिलता मुझे
दूसरे आंकड़ों के घूँघट तले
प्रागैतिहासिकता का प्रतीक है शून्य
शृंखलाओं में नहीं अन्यत्र
इस बिंदु पर जो समेटे मुझे
उतनी ही सूक्ष्मता से
और उतनी ही संलिप्तता-निर्लिप्तता के साथ।
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